रूद्रप्रयाग जिले की पहाडि़यों में बसा एक छोटा सा गाँव है - सेमी। 16 जून को बरसी आसमानी आफत ने सारे गाँव को खंडहर करके रख दिया। खेती और चारधाम यात्रा संबंधी छोटे-मोटे व्यवसायों से जुड़े यहाँ के निवासियों ने पाई-पाई जोड़कर अपने घर बनाए थे जो घर तो अब भी दिखते हैं लेकिन रहने लायक नहीं रहे। घनघोर बारिश के बाद इस पूरे गाँव की जमीन ही अपने आप नीचे की ओर धंसने लगी। देखते ही देखते दरकते मकान उनमें रहने वालों के सपने भी चकनाचूर कर गए। दुःख की बात तो यह है कि शासकीय तौर पर ऐसे घरों को पूर्णतया नष्ट नहीं माना गया है इसलिए राहत राशि भी उतनी नहीं मिली। मरम्मत की राहत राशि से भला चित्र में दिखाई दे रहे मकान को क्या रहने लायक बनाया जा सकता है? बहरहाल, पास आते जा रहे भीषण ठण्ड के मौसम की डरा देने वाली आशंकाओं के बीच इस गाँव के लोग टेण्टों में रहने को विवश हैं। वात्सल्यमूर्ति पूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी के पावन मार्गदर्शन में परमशक्ति पीठ के ‘वात्सल्य सेवा केन्द्र’ ने इस गांव की पीड़ा को अनुभव किया और उनके बीच सभी आवश्यक राहत सामग्री का वितरण किया। गाँव के प्रधान बताते हैं कि वात्सल्य सेवा केन्द्र के माध्यम से हमें केवल सहायता ही नहीं बल्कि इस मुसीबत से लड़ने की शक्ति भी मिली है।
त्रियुगीनारायण - उत्तराखंड के अतिप्राचीन स्थानों में से एक। कहा जाता है कि यहाँ पर भगवान शिवशंकर एवं माता पार्वती का विवाह हुआ था। हजारों वर्ष पुराना यह स्थान रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखंड त्रासदी की
रात को यहाँ के निवासियों ने सैकड़ों तीर्थयात्रियों को भोजन-पानी और आश्रय देकर उनकी प्राणरक्षा की। यहीं पर रहने वाले पेशे से ड्राइवर ललितप्रसाद किसी शारीरिक बीमारी के दौरान हुए इलाज में किसी दवाई के दुष्प्रभाव से इनके दोनों पैर अशक्त हो गए। वे बिना किसी की सहायता के एक कदम भी नहीं चल सकते। दुर्भाग्य ने यहीं पीछा नहीं छोड़ा। जंगल में अचानक आग लगी और वहाँ घास लेने गई पत्नी की झुलसने से मृत्यु हो गई। दो पुत्रियों और एक पुत्र के इस पिता के पास गुजारे का कोई साधन न था। जैसे तैसे गाँव वालों की कृपादृष्टि से बस जीवन चल रहा था। उत्तराखंड त्रासदी के बाद दीदी माँ जी के पावन मार्गदर्शन में वहाँ राहत कार्य आरंभ हुए। ‘वात्सल्य सेवा केन्द्रों के कार्यकर्ता भाई-बहन जब त्रियुगीनारायण पहुंचे तो वहाँ उनकी मुलाकात ललितप्रसाद से हुई। जब उन्हें बताया गया कि ज़रूरतमंद परिवारों के बच्चों के लिए वात्सल्य सेवा केंद्रों में रहने और स्कूली शिक्षा के लिए समुचित व्यवस्था की गई है तो वे अपनी दोनों बेटियों को वहाँ भेजने के लिए सहर्ष तैयार हो गए। ये दोनों बच्चियां इस समय केदारनाथ मार्ग स्थित ग्राम कोरखी में संचालित ‘वात्सल्य सेवा केन्द्र’ में रहकर अपनी स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। पुत्र की स्कूल फीस भी संस्था ही वहन करती है। ललितप्रसाद बहुत ही कृतज्ञ भाव से कहते हैं कि -‘मैं अपनी दोनों बेटियों को लेकर बहुत चिंतित था कि कैसे इनकी पढ़ाई-लिखाई होगी लेकिन दीदी माँ जी की कृपा से आज वे दोनों अच्छी पढ़ाई के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी ग्रहण कर रही हैं। मैं तो आजीवन उनका ऋणी रहूँगा।’ उनकी दोनों बेटियां शिवानी और काजल यहाँ रह रहे सब बच्चों के साथ बहुत खुश हैं। पहले की तरह अब उन्हें अपने घर की याद नहीं आती। पांचवी और चैथी कक्षाओं में अध्ययनरत् ये दोनों बच्चियां दीदी माँ जी का स्नेहिल प्यार पाकर अभीभूत हैं।
- दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा
सौजन्य - वात्सल्य निर्झर, नवम्बर 2013
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