‘भयानक प्राकृतिक आपदा से बिखर चुके उत्तराखंड के अनेक गांवों में चारों ओर से राहत सामग्री का पहुंचना जारी है। मैंने पहाड़ी रास्तों पर से गुजरते हुए कई स्थानों पर देखा कि बच्चे धीरे-धीरे चल रही गाडि़यों की पीछे दौड़ते हैं। अपने दोनों हाथ फैलाये हुए उन्हें देखकर मन दुःख से भर उठता है। हर कोई उन्हें आकर कुछ न कुछ देता है। भय इस बात का है कि इस त्रासदी के बाद लगातार चल रहा राहत अभियान कहीं उन बच्चों को ‘याचक’ मनोवृति से न भर दे। अपने कठिन परिश्रम के दम पर पहाड़ों की विषम परिस्थितियों में जीने वाले ये स्वाभिमान गिरिवासी कहीं दीन-हीन भावना से न भर उठें, अपने राहत कार्यों के दौरान हमें इन बातों का भी विशेष ध्यान रखना होगा। हम यदि किसी को रोटी दे रहे हैं तो यह बहुत अच्छी बात है लेकिन यह भाव तब और भी सुन्दर रूप ले उठेगा जब हम उसे रोटी कमाने लायक बना दें।
हमने तय किया कि इन प्रभावित इलाकों में जहाँ भी जिसे जैसी जरूरत होगी उसे वह सामग्री या सहायता प्रदान करेंगे लेकिन सर्वोच्च प्राथमिकता होगी उन लोगों को अपने पैरों पर खड़ा करने की जिनका सबकुछ छिन चुका है इस विपति में। परमशक्ति पीठ के माध्यम से हम बच्चों की अच्छी शिक्षा व्यवस्था करेंगे। पति या बच्चों के बिछोह से दुखी महिलाओं को सहानुभूतिपूर्वक उस दुःख से निकालकर हम वात्सल्य सेवा केंद्रों के माध्यम से स्वाभिमानपूर्ण स्वरोजगार की ओर अग्रसर कर रहे हैं।
मैंने उत्तराखंड में अपने बच्चों से बिछुड़ गई माँ की ममता को तड़पते देखा है। रोज रात को अपनी माँ की गोद में सिर रखकर, उसका हाथ पकड़कर उसकी लोरियां सुनते हुए सो जाने वाले बच्चों को अपने माता-पिता की याद में बिलखते देखा है। बहनें, भाईयों की याद में तड़प रही हैं और भाई जंगलों में, घाटियों में अपनी बहन को तलाश रहे हैं। अनकहे दर्द से सारी केदारनाथ घाटी चुपचाप आंसू बहाती है दिन रात। जो बिछुड़ गए अब उन्हें तो नहीं मिलाया जा सकता लेकिन हाँ उनकी पीड़ा को हम सभी मिलकर कम जरूर कर सकते हैं। हमने परमशक्ति पीठ के माध्यम से दानदाता बंधु-भगिनियों से आव्हान किया है कि वे हमारे इस अभियान के माध्यम से पीडि़त मानवता की सेवा में आगे आएं। यह बताते हुए प्रसन्नता है कि दुनिया भर से हमारे इस कार्य को लोगों ने केवल सराहा ही नहीं बल्कि अपना भरपूर सहयोग भी प्रदान किया है।
- दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा
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