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Friday, August 2, 2013

अच्छे इरादों से ही आत्मिक आनन्द मिलता है...

मुझे इस बात का संतोष है कि जिन उद्देश्यों को लेकर प्रतिवर्ष इस ‘बालिका व्यक्तित्व विकास शिविर’ का आयोजन होता है उसमें विभिन्न प्रांतों से भाग लेने वाली बालिकाएं उन्हें पूरी तरह से आत्मसात करने का प्रयत्न कर रही हैं। व्यक्ति यदि सच्चाई और सत्यनिष्ठा के साथ अपना जीवन जीता है तो उसके व्यक्तित्व में गौरव गरिमा जुड़ जाती है। वे जिन जीवन मूल्यों को जिंदगी के साथ लेकर चलते हैं वे उसकी आभा बन जाते हैं। मनुष्य अपनी नियति को स्वयं निर्धारित करता है। सफलता उन्हें ही मिलती है जो कार्य के दौरान डाली गई बाधाओं को पार करते हैं। बच्चों ने शिविर में शिशु के समान बने रहकर बहुत कुछ अच्छा सीखने का प्रयत्न किया इस बात की मुझे बहुत प्रसन्नता है। अनुशासन की कटीली धारों को सहकर बच्चों ने अपनी सुबह से शाम तक की गतिविधियों में ऐसा बहुत कुछ सीखा है जो उन्हें अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन को सार्थक करने में बहुत सहायता प्रदान करेगा।

प्यारी बेटियों, हमेशा स्मरण रखना कि कभी भी नाली में पड़ा कंकर शंकर नहीं बनता। शंकर जो वही पत्थर बनता है जिसने नर्मदा की प्रचण्ड और वेगवान धाराओं को सहन करते हुए अपना ऐसा निर्माण कर लिया जिसने उस पत्थर के भीतर भी लोगों को शंकर के दर्शन करने का आनन्द दे दिया। बच्चों, अभी मैं देख रही थी कि आपने राष्ट्रभक्ति से भरपूर सांस्कृतिक प्रस्तुतियां यहां दीं उन्हें प्रस्तुत करते समय आपके चेहरों पर जो उत्साह भरी चमक थी ना वही इस कार्यक्रम की सफलता है। अक्सर ऐसा होता है कि सुबह से शाम तक के कार्यक्रमों में थका देने वाले कार्यक्रमों के बाद मन बुझ सा जाता है। मैंने इस सात दिवसीय शिविर की संयोजिका शिरोमणि जी से कहा था कि शिविर में आने वाली बच्चियों की कोमलता को ज्यादा कष्ट नहीं देना। कोमलता स्वभाव है नारी का। इसको छोड़ कर शायद अपने अस्तित्व के साथ खिलवाड़ हो जाता है। और कोमलता चाहिये मनुष्यता को। अपना स्नेह और प्रेम से भरा हाथ जब किसी के सिर पर रख दोगी ना तो वो मनुष्यता को अर्जित कर लेगा।

बच्चों, उत्तराखण्ड के तीर्थों में हुई त्रासदी से मेरा मन उद्वेलित है। इतने पूरे भारत को दुखी किया है। लोग कहते हैं कि यह कुदरत का कहर है लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि कुदरत बहुत उदार होती है। तुम एक बीज धरती में डालोगे तो वह उसकेे बदले तुम्हें हजार वापिस लौटाती है। हम उसे जो देते हैं वही तो उससे पाते हैं ना? यह विचार पैदा होता है कि जो केदारनाथ सबके नाथ हैं वो लोगों को अपने आंगन में अनाथ करके वहां विराजित हैं! कदाचित उनके मन में शिकायत है हमारे लिए। वो कहते हैं कि मैं प्रकृति में हूं, मैं सृष्टि में हूं, मैं कण-कण में हूं। तुमने मुर्गी के अण्डे खाये, तुमने असहायों पर डण्डे बरसाये, तुमने अपनी मर्यादाओं का अतिक्रमण किया। तुमने धरती के साथ, प्रकृति के साथ सद्व्यवहार नहीं किया। अब तुम मेरी मूर्ति के सामने आकर मेरा सत्कार कर रहे हो? मैं संहार का देवता हूं लेकिन फिर भी मैं असमय किसी का संहार नहीं करना चाहता लेकिन तुमने यदि प्रकृति का उपहास किया है तो आज प्रकृति तुम्हारा उपहास कर रही है।

आज सारा देश उन लोगों के दर्द को अनुभव कर रहा है जो इस भीषण त्रासदी का शिकार हुए हंै। यह प्रकृति द्वारा किया गया अन्याय नहीं बल्कि हमारे द्वारा हमारे ही साथ किया गया व्यवहार है जो इस प्राकृतिक आपदा के रूप् में हमारे सामने आया है। हम जो चाहते हैं वहीं व्यवहार हमें दूसरों के साथ करना चाहिए। अगर हम प्रकृति से कुछ अच्छा चाहते हैं तो उसके बदले हमें भी उसे कुछ देना होगा ना? हम अगर अपने दुष्कर्मों से प्रकृति को गंदा कर रहे हैं तो बदले में वह हमारा ख्याल कब तक रख सकेगी? केवल प्रकृति ही नहीं बल्कि अपने आसपास के प्राणी मात्र के साथ सद्व्यवहार करो बच्चों। नेह बांटो, प्रेम बांटो, भरोसा बांटो, अपने चित्त में संतोष लाओ, किसी एक की जिंदगी जरूर संवारों। किसी की मदद करो लेकिन ख्याल रहे कि जिसे मदद की है तुमने, उसे पता ही न चले कि किस हाथ ने उसकी मदद की है। ऐसा जीवन जियो जिसपर सब गौरव कर सकें।
बच्चों, प्रतिष्ठा बड़े पदों से मिल सकती है लेकिन प्रसन्नता हमेशा भीतर के अच्छे इरादों से आती है।  अगर कोई बोझिल है तो वह अपने पापों के पत्थरों से दबकर बोझिल होता है। जैसे जैसे इन पत्थरों से मुक्त होओगे तैसे ही तैसे हल्के होकर आनन्द से भर उठोगे। ऐसा व्यक्ति जिसके पास पश्चिम के जगत की त्वरा और पूरब के जगत की शांति हो तभी हम श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण कर सकेंगे। तुम मां बनोगी आने वाले समय में बेटियों, और जब मां बनोगी तो अपनी संतानों को बताना की बच्चे, स्त्री मात्र शरीर नहीं होती। जब उसे यह संस्कार दोगी तो आने वाले समय में फिर किसी भी ‘दामिनी’ के साथ बर्बर और अमानुषिक व्यवहार नहीं होगा।


                                                                                                                            -दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा
                                                                                                       सौजन्य - वात्सल्य निर्झर, जुलाई 2013

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