
बहेलिये ने कहा -‘नहीं छोडूँगा।’ यह सुनकर पंछी ने कहा -‘जीवन में हमेशा सफल रहने के तीन रहस्य मैं तुम्हें बता सकता हूँ लेकिन तभी जब तुम मुझे छोड़ दो।’ उस बहेलिये के मन में लालच पैदा हुआ -‘अरे! ये नन्हा सा पंछी मुझे सफलता के तीन रहस्य बनाएगा!’ उसने लोभवश तुरंत उसे जाल से आजाद कर दिया। छूटते ही वह पास के एक पेड़ पर जा बैठा। बहेलिये ने कहा -‘लो, मैंने तुम्हें छोड़ दिया। तुम कहते थे ना कि सफलता के तीन रहस्य बताओगे। अब बताओ मुझे वो रहस्य।’
पंछी बोला -‘सबसे पहला रहस्य तो यह है कि जो बात तुम्हारी बुद्धि में ना आए उसको मानना नहीं।’ जैसे कि मैं आप सब सामने बैठे बच्चों से यह कहूँ कि -‘ये जो बिटिया बैठी है ना, इसको रात को पंख निकल आते हैं। फिर ये उड़कर उस मन्दिर के ऊपर बैठ जाती है। तो बताओ बच्चों, क्या इस बात को आपकी बुद्धि कभी मानेगी? जो बात आपकी बुद्धि में ना समाये उसे कभी मत मानना।’ फिर बहेलिये ने कहा दूसरा बताओ। पंछी ने कहा -‘दूसरा रहस्य यह है कि असंभव को संभव बनाने की कोशिश नहीं करना। जो हो नहीं सकता उसे करने की कोशिश कभी नहीं करना।’ जैसे मैं आपसे पूछूँ कि कोई इंसान कहे कि मैं तो मरूँगा ही नहीं। तो क्या उसका हमेशा जीवित रहना संभव है? क्या वह कभी नहीं मरेगा?’ और उस पंछी ने तीसरा रहस्य बताया कि -‘नुकसान हो जाने के बाद कभी भी पछताना नहीं।’
ये तीन रहस्य हैं सफलता के। यह सुनकर वह बहेलिया चिल्लाने लगा -‘तू बड़ा ही बुरा पंछी है, तूने मुझे धोखा दिया है। ये भी भला कोई रहस्य हैं। मैं तो समझता था कि तू पता नहीं कौन सा खजाना मुझे बताने वाला है।’ तो पंछी ने कहा -‘ऐ भाई सुनो, इधर देखो मेरी ओर।’ बहेलियों ने जब उसकी ओर देखा तो वह बोला -‘मेरे दिल में कोहिनूर हीरा है।’ जैसे ही बहेलिये ने ये सुना वह पेड़ पर चढ़कर उसे पकड़ने की कोशिश करने लगा। पंछी एक डाल से दूसरी डाल उसे नचाता हुआ उड़कर दूसरे पेड़ पर जा बैठा। बहेलिया फिर दूसरे पेड़ पर चढ़ा। इसी अफरातफरी में बहेलिया पेड़ से नीचे गिर पड़ा और उसका एक पैर टूट गया। नीचे पड़ा-पड़ा वह पछता रहा था -‘अरे, मैंने इसे क्यों छोड़ा। मैं मारने के बाद इसे काटता तो इसके दिल से कोहिनूर हीरा निकलता।’
पंछी फिर से उसके पास आकर बोला -‘देखो, तुमने मेरी एक भी बात नहीं मानी। मैंने तुम्हें सफलता के तीन रहस्य बताए थे। एक - जो बुद्धि में ना आए उसे मत मानो। दूसरा - असंभव को संभव करने की कोशिश ना करो और तीसरा - हानि हो जाने के बाद पछताना नहीं।’ मेरे दिल में कोहिनूर का हीरा है भला यह बात बुद्धि में आने जैसी है क्या? फिर भी तुमने मुझे पकड़ने का प्रयास किया। मेरे तो पंख हैं लेकिन तुम्हारे नहीं, तुम मुझे कैसे पकड़ सकते हो? क्या यह असंभव नहीं था जिसे तुमने संभव बनाने का प्रयत्न किया। तीसरा जब मैं तुमसे छूट ही गया था तो फिर पछताते हुए तुम मुझे पकड़ने की हाय-हाय में क्यों दौड़े जिसके परिणाम में तुम्हारा पैर टूट गया?
जीवन में इन तीन बातों को ख्याल रखना बहुत जरुरी है। यह केवल एक मनोरंजक कहानी नहीं है बल्कि जीवन की बड़ी सीख मिलती है। अक्सर हममें से अधिकतर लोग कही-सुनी बातों पर विश्वास कर लेते हैं। उन बातों पर भी अमल करना शुरू कर देते हैं। जिन्हें पहली बार सोचने में तो हमारी बुद्धि ही उसे मानने से इंकार कर देती है, फिर केवल अपनी जिद के कारण हम जीवन में बहुत से ऐसे कार्यों को पूरा करने की कोशिश में अपना ऊर्जा नष्ट करते हैं जो संभव ही नहीं होते। जिन्हें लाख प्रयत्न करने पर भी संभव नहीं बनाया जा सकता और फिर इन दोनों ही बातों के कारण जब कभी भी हमें बहुत बड़ी हानि होती है तो हम पछताने की प्रक्रिया से गुजरने लगते हैं जो अंततः हमें मानसिक अवसाद तक ही स्थिति में पहुँचा देती है। इस कहानी को सदैव स्मरण रखें और अपने जीवन को सार्थक बनाने में स्वयं की सहायता करें।
साभार - वात्सल्य निर्झर, मार्च 2015
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