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बहुत ही गहरी वेदना का विषय है कि आज समाज में एकाकी वृद्धावस्था के मामले दिनोंदिन बढ़ रहे हैं। अपनी संतानों के लिये जीवनभर कष्ट सहने वाले माता-पिता जब असहाय अवस्था में वृद्धाश्रम की दहलीज पर ढकेल दिये जाते हैं तो मैं समझती हूँ कि जीवन का इससे बड़ा दुर्भाग्य और कोई हो ही नहीं सकता। ऐसा करते हुए संतानों को यह जरूर सोच लेना चाहिए कि एक दिन उनकी भी यही हालत होगी। क्योंकि जो व्यवहार वे अपने माता-पिता से कर रहे हैं, उनके बच्चे भी वही व्यवहार उनसे करने वाले हैं। केवल अपने माता-पिता ही नहीं बल्कि हर उस बुजुर्ग का ख्याल रखिये जो अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता। उसकी सेवा-सुश्रुषा एक ऐसा पुण्यकार्य है जो लाखों यज्ञानुष्ठानों के बराबर फलदायी है। उनका आशीर्वाद जीवनभर साथ चलकर सुख-समृद्धि की मंजिल तक ले जाता है। आइये, नववर्ष में हमसब संकल्प लें अपने बुजुर्गों की सेवा का’
-दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा
वात्सल्य निर्झर, जनवरी 2015
This essay was really an heart touching essay for me though I am a student.
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