हमने तय किया कि इन प्रभावित इलाकों में जहाँ भी जिसे जैसी जरूरत होगी उसे वह सामग्री या सहायता प्रदान करेंगे लेकिन सर्वोच्च प्राथमिकता होगी उन लोगों को अपने पैरों पर खड़ा करने की जिनका सबकुछ छिन चुका है इस विपति में। परमशक्ति पीठ के माध्यम से हम बच्चों की अच्छी शिक्षा व्यवस्था करेंगे। पति या बच्चों के बिछोह से दुखी महिलाओं को सहानुभूतिपूर्वक उस दुःख से निकालकर हम वात्सल्य सेवा केंद्रों के माध्यम से स्वाभिमानपूर्ण स्वरोजगार की ओर अग्रसर कर रहे हैं।
मैंने उत्तराखंड में अपने बच्चों से बिछुड़ गई माँ की ममता को तड़पते देखा है। रोज रात को अपनी माँ की गोद में सिर रखकर, उसका हाथ पकड़कर उसकी लोरियां सुनते हुए सो जाने वाले बच्चों को अपने माता-पिता की याद में बिलखते देखा है। बहनें, भाईयों की याद में तड़प रही हैं और भाई जंगलों में, घाटियों में अपनी बहन को तलाश रहे हैं। अनकहे दर्द से सारी केदारनाथ घाटी चुपचाप आंसू बहाती है दिन रात। जो बिछुड़ गए अब उन्हें तो नहीं मिलाया जा सकता लेकिन हाँ उनकी पीड़ा को हम सभी मिलकर कम जरूर कर सकते हैं। हमने परमशक्ति पीठ के माध्यम से दानदाता बंधु-भगिनियों से आव्हान किया है कि वे हमारे इस अभियान के माध्यम से पीडि़त मानवता की सेवा में आगे आएं। यह बताते हुए प्रसन्नता है कि दुनिया भर से हमारे इस कार्य को लोगों ने केवल सराहा ही नहीं बल्कि अपना भरपूर सहयोग भी प्रदान किया है।
- दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा
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