भानु भैया की
उच्च वैचारिक स्थिति हमेशा जीवन का पथ प्रदर्शन करती है। जब उनकी बीमारी बहुत ही
गंभीर स्थिति में पहुँच गई थी तो मैंने सोचा कि भैया को अपने गुरुदेव का आशीर्वाद
दिलवा दूँ। मैं गुरुदेव के साथ उनसे मिलने पहुँची। मैंने कहा -भैया, महाराजश्री सिद्ध सन्त हैं, महापुरुष हैं तुम इनसे मोक्ष मांग लो। तुम उनसे
मांग लो कि मैं आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाऊँ। भानु भैया ने यह सुनकर थोड़ी
देर के लिए अपनी आँखें बन्द कीं और फिर मेरा हाथ पकड़कर बोेले - ‘माँ, तुम ऐसा क्यों कह रही हो? मेरी कोई इच्छा
नहीं है मोक्ष लेने की या दोबारा जन्म न लेने की। मैं महाराज जी से मोक्ष नहीं
मांग सकता क्योंकि अभी तुम्हारा काम भी अधूरा है और देश का काम भी। यदि देश का
कार्य अधूरा है तो फिर मैं मुक्ति की कामना कैसे कर सकता हूँ।
इसलिए मुझे तो
दोबारा जन्मना ही है। मैं दोबारा ऐसी माँ की कोख से जन्मूँ जो पैदा करते ही मुझे
त्याग दे और फिर मैं तुम्हारे पालने में आ जाऊँ। तुम्हारी गोद में खेलूँ। वात्सल्य
ग्राम में ही रहकर बड़ा हो जाऊँ और फिर तुम्हारे भी अधूरे कामों को पूरा करूँ और
देश के भी। इसलिये मैं मुक्ति की कामना नहीं कर सकता।’ यह सुनकर मैं भैया को देखती ही रह गई। मेरे नेत्रों से
अश्रु ऐसे झरने लगे जैसे सावन में बादल झरते हैं। बहुत ही भावुक करने वाला दृश्य
और समय था वह। राष्ट्रवाद की इतनी तीव्र उत्कंठा कि कोई मोक्ष की कामना भी छोड़ दे,
यह केवल भानु भैया जैसे व्यक्तित्व के भीतर ही
हो सकता है। धन्य है उनका जीवन जो आज भी देशवासियों के लिये प्रेरणा है। आज उनके
पुण्य स्मरण दिवस पर मैं उनको अपने हृदय की गहराई से याद करते हुए अपने
श्रद्धासुमन अर्पित करती हूँ।
- दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा
साभार - वात्सल्य निर्झर, सितम्बर 2014
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