इसलिए मुझे तो
दोबारा जन्मना ही है। मैं दोबारा ऐसी माँ की कोख से जन्मूँ जो पैदा करते ही मुझे
त्याग दे और फिर मैं तुम्हारे पालने में आ जाऊँ। तुम्हारी गोद में खेलूँ। वात्सल्य
ग्राम में ही रहकर बड़ा हो जाऊँ और फिर तुम्हारे भी अधूरे कामों को पूरा करूँ और
देश के भी। इसलिये मैं मुक्ति की कामना नहीं कर सकता।’ यह सुनकर मैं भैया को देखती ही रह गई। मेरे नेत्रों से
अश्रु ऐसे झरने लगे जैसे सावन में बादल झरते हैं। बहुत ही भावुक करने वाला दृश्य
और समय था वह। राष्ट्रवाद की इतनी तीव्र उत्कंठा कि कोई मोक्ष की कामना भी छोड़ दे,
यह केवल भानु भैया जैसे व्यक्तित्व के भीतर ही
हो सकता है। धन्य है उनका जीवन जो आज भी देशवासियों के लिये प्रेरणा है। आज उनके
पुण्य स्मरण दिवस पर मैं उनको अपने हृदय की गहराई से याद करते हुए अपने
श्रद्धासुमन अर्पित करती हूँ।
- दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा
साभार - वात्सल्य निर्झर, सितम्बर 2014